लद्दाख से तवांग तक झट‑पट तैनाती: तोप‑टैंक की तेज आवाजाही के लिए प्लान तैयार

नई दिल्ली 
मान लीजिए लेह-लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश के तवांग या फिर कश्‍मीर घाटी में दुश्‍मनों के साथ जंग चल रही हो और गोला-बारूद या फिर अन्‍य साजो-सामान की कमी होने लगे तो ऐसे हालात में सशस्‍त्र बलों के जवान क्‍या करेंगे? भारत सरकार अब इस गैप को खत्‍म करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है. रक्षा मंत्रालय ठंडे बस्‍ते में चली रही मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट (MTA) की खरीद प्रक्रिया को अब रफ्तार देने जा रहा है. इस बाबत जारी होने वाले टेंडर को अंतिम रूप दिया जा रहा है. MTA की कॉस्टिंग यानी कीमत और स्पेसिफिकेशन काफी महत्‍वपूर्ण हैं, ताकि वे भारतीय हालात के अनुरूप उपयोगी हो सकें. बता दें कि भारत ने कुछ सप्‍ताह पहले ही देसी 5th जेनरेशन फाइटर जेट को लेकर 15000 करोड़ रुपये का फंड जारी किया है. इसमें डिफेंस सेक्‍टर से जुड़ी कई कंपनियों ने इंट्रेस्‍ट भी दिखाया है. DRDO ने रेल बेस्‍ड अग्नि प्राइम मिसाइल का परीक्षण किया है, जिसकी रेंज 2000 किलोमीटर है. इंडियन आर्म्‍ड फोर्सेज के जखीरे में ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल पहले से ही मौजूद है. अब MTA की खरीद से इंडियन एयरफोर्स गोला-बारूद या अन्‍य साजो-सामान झट से मौके पर पहुंचा सकेगी, ताकि दुश्‍मनों को उसकी मांद में ही तबाही का मंजर दिखाया जा सके.

जानकारी के अनुसार, भारत सरकार ने लंबे समय से अटकी MTA प्रोजेक्‍ट को गति देने की तैयारी शुरू कर दी है. रक्षा मंत्रालय जल्‍द ही इसके लिए टेंडर जारी करने वाला है. यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब भारतीय वायुसेना (IAF) अपने परिवहन बेड़े (Transport Fleet) में गंभीर कमी से जूझ रही है और दूसरी ओर 114 मल्‍टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) खरीद तथा रूस से Su-35 विमानों पर बातचीत जैसी महत्‍वपूर्ण योजनाओं को भी आगे बढ़ा रही है. वायुसेना की मध्‍यम-वर्ग परिवहन क्षमता अब नाजुक स्थिति में पहुंच चुकी है. कभी 200 से अधिक विमान वाला एएन-32 बेड़ा अब घटकर 100 से कम रह गया है. इनमें से भी ज्‍यादातर अपनी सेवा अवधि समाप्ति तक पहुंच रहे हैं. साल 1980 के दशक में शामिल किए गए IL-76 विमानों की सेवा क्षमता घट रही है और इनके रखरखाव की लागत तेजी से बढ़ रही है. छोटे एवरो और डॉर्नियर विमानों के रिटायर होने के बाद IAF का परिवहन बेड़ा असंतुलित हो गया है. फिलहाल C-17 ग्‍लोबमास्‍टर भारी सामरिक परिवहन (80 टन तक) करता है और C-295 हल्‍के मिशन (5-10 टन) संभालते हैं. मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की भारी कमी है.

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सामरिक असर

20-30 टन भार वहन करने वाले विमान की कमी केवल लॉजिस्टिक असुविधा नहीं है, बल्कि यह भारत की सामरिक तत्‍परता पर भी सीधा असर डाल रही है. चाहे लद्दाख और अरुणाचल जैसे उच्‍च हिमालयी मोर्चे हों या सेना के भावी ज़ोरावर हल्‍के टैंकों की तेजी से तैनाती, मौजूदा हालात गंभीर बाधा बनते जा रहे हैं. इंडिया डिफेंस न्‍यूज की रिपोर्ट के अनुसार, यह कमी दो दशक से बनी हुई है और अब भी एएन-32 जैसे वृद्ध विमानों पर निर्भरता जोखिम भरी है. भारत ने मीडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की जरूरत को 2000 के दशक में ही पहचाना था. रूस के साथ HAL-इल्यूशिन की संयुक्त परियोजना MTA इसी दिशा में थी, लेकिन लगातार देरी और फाइनेंशियल सपोर्ट पर सहमति न बनने के कारण 2015 में इसे रद्द कर दिया गया. इसके बाद भारत ने C-130J सुपर हरक्यूलिस और सीमित संख्‍या में सी-17 जैसे स्‍टॉपगैप हल अपनाए, लेकिन अब ये भी या तो महंगे हो रहे हैं या बंद हो चुके हैं.
ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से आर्म्‍ड फोर्सेज की ताकत में भी इजाफा होगा.

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ग्‍लोबल कंटेंडर

नए टेंडर में कई इंटरनेशनल प्‍लेयर्स दस्‍तक दे रहे हैं :

    IL-276 (रूस-HAL) : रूस का नया डिजाइन, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद सप्‍लाई चेन और वित्‍तीय अनिश्चितताओं पर सवाल.

    C-130J (लॉकहीड मार्टिन-टाटा) : पहले से IAF में परिचित, लेकिन पुरानी तकनीक और सीमित इंडस्ट्रियल सपोर्ट.

    A400M Atlas (एयरबस) : 37 टन तक ले जाने वाला आधुनिक और बहुपयोगी विमान, लेकिन कीमत और परिचालन लागत ऊंची.

    KC-390 Millennium (एम्‍ब्राएर-महिंद्रा) : 18-30 टन भार क्षमता के साथ भारत की जरूरतों के अनुरूप, आधुनिक एवियोनिक्स और जेट-संचालित दक्षता. 

सबसे अहम, ब्राजील ने गहरी औद्योगिक साझेदारी और भारत में उत्‍पादन की पेशकश की है.

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कूटनीतिक और औद्योगिक अवसर

विशेषज्ञों के अनुसार, KC-390 भारतीय वायुसेना की जरूरतों के लिए सबसे उपयुक्‍त माना जा रहा है. एयर मार्शल मथेस्‍वरन का कहना है कि इसके जेट इंजन इसे बेहतर दक्षता देते हैं और ब्राजील का तकनीकी सहयोग भारत के लिए लंबे समय तक लाभकारी साबित हो सकता है. वहीं A400M अपनी क्षमता से प्रभावित करता है लेकिन महंगा है. रूस का IL-276 अभी शुरुआती चरण में है और C-130J अब पुराना पड़ता जा रहा है.

भविष्‍य की चुनौती

करीब 80 विमानों की संभावित खरीद के साथ यह परियोजना न केवल अरबों डॉलर की होगी, बल्कि भारत की दीर्घकालिक रक्षा व विमानन साझेदारियों की दिशा भी तय करेगी. इसमें निजी कंपनियों टाटा, महिंद्रा और L&T के साथ HAL की भागीदारी अनिवार्य मानी जा रही है. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह परियोजना भारत की दीर्घकालिक नागरिक विमान निर्माण आकांक्षाओं को भी आधार दे सकती है. वायुसेना के लिए यह निर्णय सिर्फ विमान चुनने तक सीमित नहीं है. यह दो दशक से बनी क्षमता खाई को भरने, बेड़े का संतुलन सुनिश्चित करने और हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक त्वरित गतिशीलता बनाए रखने का सवाल है. Airbus, Embraer, Lockheed और रूस के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा में भारत को अब तय करना होगा कि वह किसे प्राथमिकता देता है.

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